मनुष्य की मृत्यु होना क्यों जरूरी
मनुष्य की मृत्यु होना क्यों जरूरी मनुष्य अपनी माता से इस संसार में जन्म लेता है। आरम्भ में शैशव अवस्था होती है। समय के साथ उसके शरीर व ज्ञान में वृद्धि होती है। वह माता की बोली को सुनकर उसे समझने लगता है व कुछ समय बाद बोलने भी लगता है। शैशव अवस्था बीतने पर किशोर व कुमार अवस्था आरम्भ होती है। समय के साथ यह भी बीतती है। इस अवस्था में शरीर और बड़ा व बलवान हो जाता है। उसका ज्ञान भी अपनी माता व आचार्यों की शिक्षा से वृद्धि को प्राप्त होता है। इसके बाद युवावस्था आती है और मनुष्य इस अवस्था में रहते हुए अपनी शिक्षा व विद्या पूरी करता है। शरीर यौवनावस्था में पूर्ण वृद्धि को प्राप्त हो जाता है। इसके बाद शरीर की वृद्धि प्रायः नहीं होती। इस अवस्था में वह विवाह कर सृष्टि क्रम को जारी रखने में सहायक बनता है। जैसे उसके माता-पिता ने उसे जन्म दिया था, उसी प्रकार वह भी संसार में विद्यमान आत्माओं को अपनी धर्मपत्नी के द्वारा जन्म देकर उनका पालन व पोषण करता है। अपना पोषण करते हुए तथा माता-पिता एवं सन्तानों के पोषण के साथ वह वृद्धावस्था को प्राप्त होता है। वृद्धावस्था मुनष्य जीवन की अन्तिम अवस्था कही जाती...